मैं नदी हूँ तुम्हारी माँ जैसी हूँ सब कुछ सह चुप रहती हूँ। मैं नदी हूँ तुम्हारी माँ जैसी हूँ सब कुछ सह चुप रहती हूँ।
जो गर्व था कभी मातृभाषा का, लोगों में ऐसा अभिमान कहाँ ? जो गर्व था कभी मातृभाषा का, लोगों में ऐसा अभिमान कहाँ ?
इस मिट्टी में हरे भरे खेत लहराते हैं, खुली हवा में पक्षी विचरण करते चहचहाते हैं ! इस मिट्टी में हरे भरे खेत लहराते हैं, खुली हवा में पक्षी विचरण करते चहचहाते ह...
हे मातृ भूमि के सेनानी वीर रत्न , भयक्रांत काल में न छोड़ प्रयत्न। अग्नि पथ हो या ब हे मातृ भूमि के सेनानी वीर रत्न , भयक्रांत काल में न छोड़ प्रयत्न। अग्...
जैसे दिन और रात अपनी जीवन यात्रा से यह काल भ्रमण पूरा करने की चाह है उसी तरह मनुष्य को भी अपन... जैसे दिन और रात अपनी जीवन यात्रा से यह काल भ्रमण पूरा करने की चाह है उसी ...
हो हम भी शुक्रगुज़ार ताकि पूरे हो उनके हिस्से के ख्वाब इस बार। हो हम भी शुक्रगुज़ार ताकि पूरे हो उनके हिस्से के ख्वाब इस बार।